तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने मानव जाती पर अपने एकाधिकार के लिए उसे भयभीत करने के लिए तथाकथित भगवान या ईश्वर की कल्पना को धरातल पर लाया। आदमी को भयभीत किया और उसके अज्ञात भविष्य को उससे जोड़कर उसके मस्तिस्क पर कब्ज़ा कर लिया।
तथाकथित भगवान का असर दिखाने के लिए छल भी किये गए और दिखाया गया कि ईश्वर है। किसी अज्ञात बहुत बड़ी विपदा को हम ईश्वर कह सकते हैं। जिससे डर कर उन धर्मावलम्बियों का हम अनुसरण करने लगे । हम यह भी कह सकते हैं कि वह भय जो हमें मानसिक रूप से बांध सके वाही भगवान या ईश्वर हुआ ।
जिससे डर कर हम कुछ धर्मावलम्बियों के कथनानुसार कार्य को करे। नहीं तो भगवान सत्यानाश करेगा। इस प्रकार जिस व्यक्ति से वह नहीं जीत सकते थे उसे मानसिक रूप से बंदी बना कर सोसन करने के बिम्ब को ही भगवान कहते हैं।
इश्वर का धंधा
इसके फायदा तो किसी न किसी को होना ही था और उठाया भी। बड़े-बड़े मंदिर बने । गुरूद्वारे बने। मस्जिद बने । इस धर्मं के धंधे के न जाने क्या-क्या बने। एक वर्ग उसी धर्मं का ठेकेदार बन गया। वाकायदा उसका व्यापर करने लगा। इसमें किसी का अधिकार न हो और न ही कोई इसका फायदा उठा पाए और न ही कोई उसका पद हथिया पाए। बकायदे इसके लिए उसने अपने पंजीकरण पुजारी के रूप में करवा लिया और घर परिवार को चलने लगा। ईश्वर के साथ-साथ अपने को भी पूजने लगा । उसका बच्चा भी पैदा होते ही पूजने के योग्य करार दे दिया।
जब समाज में वह और उसका परिवार पूजा जाने लगा तो लगिमी था की उसे मन की करनी ही थी और करने लगा। मंदिर में कुछ लोगो को मूर्ति देखने से ही मना कर दिया और कुछ लोगो से अधिक सामग्री लेकर उनको महत्व देने लगा। इस तरह अपने लाभा के लिए स्वयं भू भगवान ने भगवन से छल करना सुरु कर दिया । आज तो यह व्यापर बहुत आगे निकल गया है।
कुछ मंदिरों में तो हजारो रुपये देदो तो उनका गर्भगृह तक देख लो । इस प्रकार धर्मं का अच्छा खासा बिजनेस ही चल निकला है।
आप भी तो सोंचे। आप भी तो विचार करें। आप भी अपने आस-पास देखें ।
जिससे डर कर हम कुछ धर्मावलम्बियों के कथनानुसार कार्य को करे। नहीं तो भगवान सत्यानाश करेगा। इस प्रकार जिस व्यक्ति से वह नहीं जीत सकते थे उसे मानसिक रूप से बंदी बना कर सोसन करने के बिम्ब को ही भगवान कहते हैं।
इश्वर का धंधा
इसके फायदा तो किसी न किसी को होना ही था और उठाया भी। बड़े-बड़े मंदिर बने । गुरूद्वारे बने। मस्जिद बने । इस धर्मं के धंधे के न जाने क्या-क्या बने। एक वर्ग उसी धर्मं का ठेकेदार बन गया। वाकायदा उसका व्यापर करने लगा। इसमें किसी का अधिकार न हो और न ही कोई इसका फायदा उठा पाए और न ही कोई उसका पद हथिया पाए। बकायदे इसके लिए उसने अपने पंजीकरण पुजारी के रूप में करवा लिया और घर परिवार को चलने लगा। ईश्वर के साथ-साथ अपने को भी पूजने लगा । उसका बच्चा भी पैदा होते ही पूजने के योग्य करार दे दिया।
जब समाज में वह और उसका परिवार पूजा जाने लगा तो लगिमी था की उसे मन की करनी ही थी और करने लगा। मंदिर में कुछ लोगो को मूर्ति देखने से ही मना कर दिया और कुछ लोगो से अधिक सामग्री लेकर उनको महत्व देने लगा। इस तरह अपने लाभा के लिए स्वयं भू भगवान ने भगवन से छल करना सुरु कर दिया । आज तो यह व्यापर बहुत आगे निकल गया है।
कुछ मंदिरों में तो हजारो रुपये देदो तो उनका गर्भगृह तक देख लो । इस प्रकार धर्मं का अच्छा खासा बिजनेस ही चल निकला है।
आप भी तो सोंचे। आप भी तो विचार करें। आप भी अपने आस-पास देखें ।
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