जीवन का मिलना उतना ही कठिन है जैसा, कि जीवन के बारे में न जानना। इन्सान के रूप में हम अपने आस-पास देखते हैं तो इन्सान- इन्सान ही तो दिख रहे है। इनके किसी के साथ भी कुछ कर सकते हैं। आज का इन्सान दूसरे को छोडो अपनों से भी प्यार छोड़ चुका है। हमारा भाई, हमारी बहिन, हमारा पडोसी, हमारे माता-पिता व अन्य सम्बन्धी भई इन्सान ही है। हम उनके साथ कुछ तो अच्छा कर ही सकते हैं. वह भी तो मानव सेवा ही है.चूकि जिसने जीवन दिया है, उसे पूजने का हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। सबसे बड़े देवता तो वही है। पैदा होते ही उनका कार्य शुरू होकर फिर मानव को चलने-फिरने लायक बनाकर ही खत्म होता है।
हमें आज से ही माता-पिता की सेवा का साथ-साथ पूजा शुरू कर देनी चाहिए।
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